स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात पहले तीन वीरता पुरस्कार नामतः परमवीर चक्र, महावीर चक्र, एवं वीर चक्र भारत सरकार द्वारा 26 जनवरी, 1950 को प्रारंभ किए गए थे जिनको 15 अगस्त, 1947 से प्रभावी माना गया था । इसके पश्चात अन्य तीन वीरता पुरस्कार अर्थात अशोक चक्र श्रेणी-I, अशोक चक्र श्रेणी-II और अशोक चक्र श्रेणी-III को भारत सरकार द्वारा 04 जनवरी, 1952 को प्रारंभ किए गए थे जिनको 15 अगस्त, 1947 से प्रभावी माना गया था । इन पुरस्कारों का जनवरी, 1967 को क्रमशः अशोक चक्र, कीर्ति चक्र तथा शौर्य चक्र के रूप में पुनः नामकरण किया गया था ।
गोल आकार, कांस्य निर्मित 1 और 3 /8 इंच का व्यास एवं केंद्र में उभरा हुआ उस पर राजकीय प्रतीक के साथ "इंद्र के वज्र' की अभिमुख चार प्रतिकृतियां उभरे हुए रूप में होंगी । इसके पीछे के भाग में हिंदी और अंग्रेजी अभिलेखों के बीच दो कमल पुष्पों के साथ हिंदी और अंग्रेजी दोनों में "परमवीर चक्र' उभरे हुए रूप में होगा ।
सादा बैंगनी रंग का रिबन
यदि कोई चक्र विजेता दुबारा कोई ऐसा वीरतापूर्ण कार्य करता है जिसने उसे चक्र प्राप्त करने के लिए अर्हक बनाया था ऐसे किसी भी वीरतापूर्ण कार्य को मान्यता रिबैंड पर बार को जोड़कर दी जाती है जिसके द्वारा चक्र निलंबित हो जाता है तथा प्रत्येक अनुवर्ती वीरतापूर्ण कार्य के लिए अतिरिक्त बार जोड़ दिया जाता है तथा ऐसे बार और बार्स को मरणोपरांत पुरस्कृत किया जाता है । दिए गए प्रत्येक बार के लिए लघु आकार में 'इंद्र के वज्र' की प्रतिकृति रिबेंड में तब जोड़ा जाए जब उसे एकल रूप में पहना जाए ।
चक्राकार और मानक रजत निर्मित, 1 और 3/8 इंच का व्यास तथा इसके पीछे रिम को स्टार के बिंदु स्पर्श करने के साथ अभिमुख पांच बिंदु का हेराल्डिक स्टार का उत्कीर्ण होगा । स्टार के मध्य में उत्कीर्ण आकर्षण राजकीय प्रतीक होगा । पिछले भाग में हिंदी और अंग्रेजी अभिलेखों के बीच दो कमल पुष्पों के साथ हिंदी और अंग्रेजी दोनों में "महावीर चक्र" का उत्कीर्ण होगा ।
रिबन आधा सफेद और आधा नारंगी रंग का होगा ।
यदि कोई चक्र विजेता दुबारा कोई ऐसा वीरतापूर्ण कार्य करता है जिसने उसे चक्र प्राप्त करने के लिए अर्हक बनाया था ऐसे किसी भी वीरतापूर्ण कार्य को मान्यता रिबैंड पर बार को जोड़कर दी जाती है जिसके द्वारा चक्र निलंबित हो जाता है तथा प्रत्येक अनुवर्ती वीरतापूर्ण कार्य के लिए अतिरिक्त बार जोड़ दिया जाता है तथा ऐसे बार और बार्स को मरणोपरांत पुरस्कृत किया जाता है । दिए गए प्रत्येक बार के लिए लघु आकार में चक्र की प्रतिकृति रिबेंड में तब जोड़ा जाए जब उसे एकल रूप में पहना जाए ।
चक्राकार, 1 और 3/8 इंच का व्यास और दोनों तरफ रिम होंगे । मेडल पर सोना चढ़ा होगा । मेडल के मुख पर कमल की माला से घिरे हुए मध्य भाग में अशोक चक्र की प्रतिकृति का उत्कीर्ण होगा । रिम के किनारे पर अंदर की ओर कमल की पत्तियां, पुष्प और कलियों का पैटर्न होगा । इसके पिछले भाग में दो कमल पुष्पों द्वारा पृथक हो रहे दो रूपांतरों के साथ हिंदी और अंग्रेजी दोनों में "अशोक चक्र" शब्द उभरा हुआ होगा ।
रिबन आधा सफेद और आधा नारंगी रंग का होगा ।
यदि कोई चक्र विजेता दुबारा कोई ऐसा वीरतापूर्ण कार्य करता है जिसने उसे चक्र प्राप्त करने के लिए अर्हक बनाया था ऐसे किसी भी वीरतापूर्ण कार्य को मान्यता रिबैंड पर बार को जोड़कर दी जाती है जिसके द्वारा चक्र निलंबित हो जाता है तथा प्रत्येक अनुवर्ती वीरतापूर्ण कार्य के लिए अतिरिक्त बार जोड़ दिया जाता है तथा ऐसे बार और बार्स को मरणोपरांत पुरस्कृत किया जाता है । दिए गए प्रत्येक बार के लिए लघु आकार में चक्र की प्रतिकृति रिबेंड में तब जोड़ा जाए जब उसे एकल रूप में पहना जाए ।
चक्राकार, 1 और 3/8 इंच का व्यास और दोनों तरफ रिम होंगे । मेडल पर सोना चढ़ा होगा । मेडल के मुख पर कमल की माला से घिरे हुए मध्य भाग में अशोक चक्र की प्रतिकृति का उत्कीर्ण होगा । रिम के किनारे पर अंदर की ओर कमल की पत्तियां, पुष्प और कलियों का पैटर्न होगा । इसके पिछले भाग में दो कमल पुष्पों द्वारा पृथक हो रहे दो रूपांतरों के साथ हिंदी और अंग्रेजी दोनों में "अशोक चक्र" शब्द उभरा हुआ होगा ।
हरे रंग का रिबन नारंगी रंग की लम्बवत रेखा द्वारा दो समान भागों में विभाजित होगा ।
यदि कोई चक्र विजेता दुबारा कोई ऐसा वीरतापूर्ण कार्य करता है जिसने उसे चक्र प्राप्त करने के लिए अर्हक बनाया था ऐसे किसी भी वीरतापूर्ण कार्य को मान्यता रिबैंड पर बार को जोड़कर दी जाती है जिसके द्वारा चक्र निलंबित हो जाता है तथा प्रत्येक अनुवर्ती वीरतापूर्ण कार्य के लिए अतिरिक्त बार जोड़ दिया जाता है तथा ऐसे बार और बार्स को मरणोपरांत पुरस्कृत किया जाता है । दिए गए प्रत्येक बार के लिए लघु आकार में चक्र की प्रतिकृति रिबेंड में तब जोड़ा जाए जब उसे एकल रूप में पहना जाए ।
चक्राकार और मानक रजत निर्मित 1 और 3/8 इंच का व्यास तथा दोनों तरफ रिम होंगे । मेडल के मुख पर कमल की माला से घिरे हुए मध्य भाग में अशोक चक्र की प्रतिकृति का उत्कीर्ण होगा । रिम के किनारे पर अंदर की ओर कमल की पत्तियां, पुष्प और कलियों का पैटर्न होगा । इसके पिछले भाग में दो कमल पुष्पों द्वारा पृथक हो रहे दो रुपान्तरों के साथ हिंदी और अंग्रेजी दोनों में "कीर्ति चक्र" शब्द उभरा हुआ होगा ।
हरे रंग का रिबन दो नारंगी लम्बवत रेखाओं द्वारा तीन समान भागों में विभाजित होगा ।
यदि कोई चक्र विजेता दुबारा कोई ऐसा वीरतापूर्ण कार्य करता है जिसने उसे चक्र प्राप्त करने के लिए अर्हक बनाया था ऐसे किसी भी वीरतापूर्ण कार्य को मान्यता रिबैंड पर बार को जोड़कर दी जाती है जिसके द्वारा चक्र निलंबित हो जाता है तथा प्रत्येक अनुवर्ती वीरतापूर्ण कार्य के लिए अतिरिक्त बार जोड़ दिया जाता है तथा ऐसे बार और बार्स को मरणोपरांत पुरस्कृत किया जाता है । दिए गए प्रत्येक बार के लिए लघु आकार में चक्र की प्रतिकृति रिबेंड में तब जोड़ा जाए जब उसे एकल रूप में पहना जाए ।
चक्राकार और कांस्य निर्मित, 1 और 3/8 इंच का व्यास तथा दोनों तरफ रिम होंगे मेडल के मुख पर कमल की माला से घिरे हुए मध्य भाग में अशोक चक्र की प्रतिकृति का उत्कीर्ण होगा । रिम के किनारे पर अंदर की ओर कमल की पत्तियां, पुष्प और कलियों का पैटर्न होगा । इसके पिछले भाग में दो कमल पुष्पों द्वारा पृथक हो रहे दो रुपान्तरों के साथ हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में "शौर्य चक्र' शब्द उभरा हुआ होगा ।
हरे रंग का रिबन तीन लम्बवत रेखाओं द्वारा चार सामान भागों में विभाजित होगा ।
यदि कोई चक्र विजेता दुबारा कोई ऐसा वीरतापूर्ण कार्य करता है जिसने उसे चक्र प्राप्त करने के लिए अर्हक बनाया था ऐसे किसी भी वीरतापूर्ण कार्य को मान्यता रिबैंड पर बार को जोड़कर दी जाती है जिसके द्वारा चक्र निलंबित हो जाता है तथा प्रत्येक अनुवर्ती वीरतापूर्ण कार्य के लिए अतिरिक्त बार जोड़ दिया जाता है तथा ऐसे बार और बार्स को मरणोपरांत पुरस्कृत किया जाता है । दिए गए प्रत्येक बार के लिए लघु आकार में चक्र की प्रतिकृति रिबेंड में तब जोड़ा जाए जब उसे एकल रूप में पहना जाए ।